• खजूर ईजराईल

खजूर- खजूर स्वास्थ्यवर्धक फल है इसका उपयोग खाने के रूप में लगातार या वर्शभर किया जा सकता है । यह अधिक आय देने वाला पौधा है।

उन्नत किस्में -

हलावी, खरदावी, शामरान, बरही, मैडजूल, खुनीजी

षुश्क जलवायु मंे उगाने वाला प्राचीनतम फलदार वृक्ष है।
मुख्यता खजूर की खेती ईरान, ईराफ, सउदी अरब, इज्रराईल, मिश्र इत्यादी देषों में की जाती है।
भारत में खजूर की खेती व्यवसायिक तौर पर गुजरात के कच्द एवं पष्चिमी राजस्थान में की जा रही है। खजूर के फल पौश्टिक तत्वों से भरपूर एवं स्वादिश्ठ होते है ।
इस फल में विटामिन, कार्बोहाईड्रेट, पोटेषियम, कैल्षियम प्रोटीन आदि प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है । खजूर में कई किसमें होती है जिसमें बरही, खूनेजी, मेडजूल प्रमुख है।
किसानों की उन्नति एवं प्रदेष की प्रगति के लिए उद्यान विभाग द्वारा रोपण पर 75 प्रतिषत का अनुदान भी दिया जाता है । प्रत्येक कृशक न्यूनतम 1/2 हैक्टेयर क्षैत्र व अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षैत्र तक के लिए अनुदायिक दर पर पौधे रोपण सामग्री प्राप्त करने के पात्र है ।
जिसमें 5 प्रतिषत नर पौधे सम्मिलित होते है ।
खजूर के पौधे 25 फीट गुना 25 फीट के अन्तराल पर लगाया जा सकता है।
ये पौधे चैथे वर्श में फल देना प्रारम्भ कर देते है।
इसकी उपज पूर्ण परिपक्वता पर यानी 8 वर्श बाद 1.5 से 2 क्विटंल प्रति पेड़ होती है।
खजूर के वृक्ष की औसतन आयु 200 वर्श होती है ।
पौधे रोपड़ के समय 3 फीट गुना 3 फीट के गहरे गडढे़ कर उसमें गोबर की कम्पोस्ट
खाद एवं निर्जमीकृत मिट्टी मिश्रण से भरकर सिंचाई करा पौधा लगाना चाहिए ।
दीमक का प्रकोप हो तो दीकम रोधी दवाई डाल देनी चाहिए ।
तीन माह तक एक दिन के अन्तराल में सिंचाई करनी होती है ।
समय - समय पर पौधे के चारों ओर निराई - मुड़ाई करते रहना चाहिए ।
सूखी पत्तियां की छंटाई भी करनी चाहिए ।
खजूर में प्राकृतिक रुप से परागण की प्रक्रिया कम होती है।
अतः अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतू नर परागण को मादा पूश्प पर कृत्रिम तरिके से छिड़काव करना जरुरी होता है ।
साधारणत: नर पौधों पर पहले पूश्प आते है ।
जिन्हे काटकर छायादार स्ािान पर सूखा लेते है।
प्राप्त पाउडर (परागण) मादा पौधों मे ं पूश्प आने पर परागकण को रूई की सहायता से परागण किया जाता है।
यह किया विषेशज्ञयों की सलाह एवं सहायता से करना ठीक रहता है।
फलो का आकार अढ़ाने एवं गुणवत्ता सुधारने हेतू फलांे की छटाई की जरुरत रहती है ।
जब फल छोटे आकार का होता है तब 1/3 भाग के फलांे की छंटाई कर देती चाहिए ।

परागण प्रक्रिया, प्रमुख कीट एवं व्याधियों पर नियंत्रण, फल गुणवत्ता सुधार फल उत्पादन बढ़ाने एवं किसी भी प्रकार के नुकसान से बचने के लिए विषेशज्ञयों की राय समय- समय पर लेनी चाहिए । फल उत्पादन व आमदनी पौधे के रखरखाव एवं उनको देय पोशक तत्वों पर निर्भर करती है।